Sunday, March 26, 2017

शहीद का धर्म

हिन्दू न कहो मुस्लिम न कहो,पहचान मेरी मानव है
   न मैने पढी है गीता कभी,न मैंने रटी है आयत
न व्रत मंगल का मै रखूं,रमज़ान मे रखूं न रोजा
   धर्म है मेरा मानवता,करता मानव की सेवा 
गेरुआ वस्त्र पहनकर न माथे पर तिलक लगाऊं
   उजले वस्त्र पहनकर न पढ़ने अजान मै जाऊं
मै सैनिक हूं सीमा का,पूजा मै देश की करता
   देश की रक्षा को कहता,अपनी कुरान और गीता 
देश के दुश्मन घात लगाए,गली-गली बैठे हैं
   अन्धकार का लिए इरादा,द्वार के पार खड़े हैं
जाति नही मेरा धर्म नही,मै वतन को मजहब कहता
  मन्दिर मे नही मस्जिद मे नही,मुझे कण-कण मे रब दिखता 
नही है जीवन मोह मुझे,न मरने से डरता हूं
  देश की खातिर जीता हूं,तो सैनिक कहलाता हूं
सब कहते हैंं 'शहीद"मुझे,जब देश पे मर जाता हूं
  अभिमान देश का मुझसे है,ईमान को मै रखता हूं
देश की सीमा को ही मै,अब अपना घर कहता हूं
  नही मै जाता काशी मे,न काबा मे जाता हूं
चर्च और गुरुद्वारे के द्वारेे पर रह जाता हूं
  वतन की मिट्टी मे मुझको दिखता है अपना तीरथ
यीशु,अल्लाह,भगवान् नही,है वतन ही मेरा ईश्वर । 
                  

1 comment:

  1. सही में अनिशा जी मनुष्य का वास्तविक सम्प्रदाय इंसानियत है । हमारे सैनिक सीमा पर दुश्मनों से लड़ते है पूरी मानवता को बचाने के लिये

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